Saturday, March 23, 2024
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सावन के चौथे सोमवार में ही रुद्राभिषेककर रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र क्यों गाना चाहिए रुद्राभिषेक करने के क्या है फायदे , क्यों खास है शिव स्तोत्र और चौथा सोमवार

शिव तांडव स्तोत्र Lyrics रुद्राभिषेक

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं चकार
चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥१॥

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥५॥

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥६॥

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥७॥

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं
मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह
माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर द्धगद्धगद्वि
निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥१६॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः
शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

शिव का अर्थ ही रुद्र है चौथे सोमवार में भगवान शंकर का रुद्राभिषेक करने से और रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र गाने मात्र से ही आपके जीवन में किए गए पाप की माफी भगवान शिव से मांगी जाती है और सावन का चौथा सोमवार इसके लिए सबसे उपयुक्त समय होता है पाप कम होने से हमारे जीवन में आने वाले दुखों में भी कमी आ जाती है क्योंकि ( रुद्रम– दु:खम द्राव्यती–नास्यतितिरुद्र: ) अर्थात भगवान शंकर का रुद्राभिषेक ही दुखों को नष्ट करता है

रुद्राभिषेक और रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र गाने मात्र से हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक किए गए पाप जिनका हमें ज्ञान भी नहीं होता उन सभी पापों को हमारी कुंडली से लेकर मृत्यु तक पातक कर्म एवं महपता भी जलकर भस्म हो जाते हैं सावन के चौथे सोमवार में रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र गाने मात्र से साधकों को भगवान का शुभ आशीष प्राप्त होता है और परम आनंद की अनुभूति होती है परिवार में शांति बनी रहती है और साधक के सारे मनोरथ भगवान शंकर के आशीर्वाद से पूरे हो जाते हैं शिव पुराण में माना जाता है कि सावन के चौथे सोमवार मैं रावण रचित शिव तांडव स्त्रोत गाकर रुद्राभिषेक करने मात्र से ही सभी देवी देवताओं के पूजन के तुल्य आशीर्वाद मिल जाता है

भगवान शंकर के बारे में हमारे पूजा विधि में और हमारे शास्त्रों में लिखा गया है कि किसी भी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए रुद्राभिषेक किया जाना चाहिए व रुद्राभिषेक में इस्तेमाल होने वाले पूजा के समान अनेक द्रव पदार्थ तथा पूजन की सामग्री को विशेष महत्व देकर रुद्राभिषेक में इस्तमाल मैं मंत्रोच्चारण के साथ लाया जाता है ताकि साधक रुद्राभिषेक पूजन संपूर्ण विधि के साथ संपन्न कर सके और जिस मनोवृति को लेकर भगवान शंकर का रुद्राभिषेक किया गया है वह पूरे विधि विधान के साथ संपन्न हो भगवान शंकर के बारे में शिव पुराण में कहा गया है कि सर्वदेव आत्मको रुद्रा: सर्वे: देवा:शिवआत्माका अर्थात सभी देवी देवताओं के हृदय में भगवान शिव का वास होता है

परंतु विशेष अवसर पर भगवान शिव का अभिषेक पूरे विधि और विधान से खासकर की सावन के महीने में किया जाना चाहिए इसमें अभिषेक के लिए भगवान शंकर को गौ माता का दूध और केवल दूध से ही अभिषेक किया जाता है और रुद्राभिषेक के समय भगवान शंकर को दूध दही घी शहद चीनी आदि को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है जिससे भगवान शंकर का अभिषेक किया जाता है वही अगर कोई रोगी है और वह स्वस्थ होने की कामना रखता है तो भगवान का रुद्राभिषेक के समय भगवान शंकर को बेलपत्र से पंचामृत की भोग लगाना चाहिए एवं कुछ विशेष तंत्रों और मंत्रों के साथ रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी रूबी के द्वारा अभिषेक किया जाना चाहिए जिनसे शिवलिंग का विधिवत अभिषेक करने पर असाध्य रोगों को भी ठीक किया गया है एवं अभीष्ट मनोकामना की भी पूर्ति होती है

भगवान शिव का रुद्राभिषेक किसी भी पुराने मंदिर में जहां कई सालों से भगवान शंकर की पूजा की जाती है वहां जाकर किया जा सकता है परंतु सावन के महीने में पूजे जाने वाले शिवलिंग को अभिषेक करने में बहुत ही उत्तम फल की प्राप्ति होती है एवं यदि सावन के महीने में सालिकराम भगवान शंकर का रुद्राभिषेक किया जाए तो इसका परिणाम बहुत ही चमत्कारिक और शीघ्र प्राप्त होता है।

वेदों में भी जगह-जगह रुद्राभिषेक और भगवान शंकर के अभिषेक की बातें लिखी गई हैं तथा अनेक लोककथा में भी इनका वर्णन किया गया है

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