अमेरिकी संसद ने भारत और अमेरिका के बीच हुई फाइटर एयरक्रॉफ्ट इंजन की डील को मंजूरी दे दी है। भारत की हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और अमेरिका की जीई ऐयरोस्पेस के बीच साथ मिलकर फाइटर जेट के इंजन बनाने को लेकर एग्रीमेंट हुआ था। इस डील को मंजूरी मिलने से दोनों देशों के बीच स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप और मजबूत होगी।
जून में पीएम नरेंद्र मोदी की स्टेट विजिट के दौरान भारत और अमेरिका के बीच इस डील पर सहमति बनी थी। अब बाइडेन सरकार को डील को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिकी संसद ने भी मंजूरी दी है। इस डील के तहत अमेरिका ने भारत के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, जेट इंजन का निर्माण और लाइसेंस का एग्रीमेंट किया था।
इसके बाद भारत लड़ाकू विमानों की संख्या को तेजी से बढ़ाएगा जीई एयरोस्पेस कंपनी एफ-414 फाइटर जेट इंजन के निर्माण के लिए अपनी 80 प्रतिशत तकनीक भारत को ट्रांसफर करेगी। इस टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का मकसद हल्के लड़ाकू विमान की क्षमताओं को बढ़ाना है। ये लड़ाकू इंजन तेजस मार्क-2 के लिए बनाए जाएंगे। मार्क-2 तेजस का एडवांस मॉडल है और इसमें जीई एफ414 इंजन लगना है। इस साझेदारी को एचएएल के चीफ सीबी अनंतकृष्णन ने बड़ा गेम चेंजर माना है, क्योंकि यह भविष्य के स्वदेशी इंजनों के लिए आधार बनेगा जो सैन्ट जेट को ताकत देंगे। सौदे के तहत 99 जेट इंजनों का निर्माण किया जाएगा, जो टेक्नोलॉजी ट्रांसफर होने की वजह से कम महंगे होंगे। एफ- 414 इंजन अपनी विश्वसनीयता और प्रदर्शन के लिए मशहूर हैं। जी एयरोस्पेस, कंपनी चार दशकों से भारत में काम कर रही है। इस डील के मंजूरी मिलने के बाद अब कंपनी को इंजन बनाने, एवियोनिक्स, सेवाएं, इंजीनियरिंग, मैन्युफैक्चरिंग और स्थानीय सोसिंग को बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस तरह की डील से भारत की जेट प्रोडक्शन की क्षमता भी बढ़ेगी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत को एक साथ दो मोर्चों यानी पाकिस्तान और चीन के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए इस डील के बाद भारत लड़ाकू विमानों की संख्या को तेजी से बढ़ाएगा।
अमेरिका पहली बार किसी देश के साथ साझा कर रहा ऐसी तकनीक
उम्मीद है कि अमेरिकी राष्ट्रपति सितंबर में जब जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए भारत आएंगे तब दोनों देश समझौते को आगे बढ़ाने के लिए चर्चा कर सकते हैं। भारत के लिए यह सौदा बेहद ही अहम क्योंकि अमेरिका ने अब तक अपने निकटतम सहयोगियों के साथ भी ऐसी तकनीक साझा नहीं की है। वहीं, भारत जेट इंजन तकनीक में काफी पीछे है लेकिन इस एक समझौते से जेट इंजन निर्माण में भारत को मजबूती मिलेगी और भारत की हवाई क्षमता बढ़ेगी। चीन के साथ बढ़ते सीमा तनाव के बीच भारत के लिए यह समझौता बेहद अहम माना जा रहा है। समझौते के तहत 80 प्रतिशत तकनीक हस्तांतरण शामिल है जिसका मूल्य 1 अरब डॉलर होने का अनुमान है। अमेरिका कांग्रेस के घटनाक्रम से परिचित एक सूत्र ने कहा कि संसद की तरफ से समझौते को मंजूरी मिल गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से पहले ही इस समझौते को मंजूरी दे दी गई थी। प्रक्रिया के अनुसार, विदेश मंत्रालय ने 28 जुलाई को सदन और सीनेट की विदेश संबंध समिति को इसकी सूचना दी। अगर अधिसूचना के 30 दिनों तक कोई कांग्रेसी प्रतिनिधि या सीनेटर आपत्ति नहीं करता है, तो इसे सबकी सहमति माना जाता है। कोई आपति नहीं हुई तो प्रशासन आगे का काम करता है।